दिल धड़कने की मंद रफ्तार को अभी तक अच्छे स्वास्थ्य से जोड़ कर देखा जाता रहा है। मगर वैज्ञानिकों ने अपराध की दुनिया से इसका नया कनेक्शन सबसे सामने रख दिया है। उनका कहना है कि किशोर उम्र में जिन बच्चों की हार्ट बीट धीमी होती है उनमें जवान होकर अपराधी बनने के चांस ज्यादा होते हैं।
वैज्ञानिकों ने ऐसे करीब 700,000 लोगों का अध्ययन किया, जिनकी हार्ट बीट किशोर उम्र में धीमी थी। उन्होंने पाया कि उसी उम्र के अन्य किशोर जिनकी हार्ट बीट तेज थी के मुकाबले इन किशोरों के क्राइम में शामिल होने की पर्सेंटज 39 फीसदी ज्यादा थी।

वैसे तो आमतौर पर एक वयस्क शख्स की दिल की धड़कन एक मिनट में 60 से 100 तक होती है, मगर कुछ लोगों की धड़कन एक मिनट में 30 तक आ जाती है। यही नहीं आराम करते वक्त जैसे रात को दिल और आराम आराम से धड़कता है।
वैज्ञानिकों को शक है कि दिल की धीमी धड़कन का मनोवैज्ञानिक असर ऐसे लोगों पर पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए एक्साइटमेंट पाना थोड़ा मुश्िकल होता है, इसलिए यह लोग उत्तेजित होने के लिए दूसरी चीजों का सहारा या ज्यादा रिस्क भी ले सकते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर दिल की धड़कन और हिंसात्मक व्यवहार के बीच बायोलॉजिकल लिंक की सहीं ढंग से पहचान हो जाए तो फिर इसकी रोकथाम
के उपाय भी किए जा सकते हैं। यह अध्ययन स्टॉकहोम के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट की डॉक्टर एंटी लेटवाला की देखरेख में हुआ है। वह कहती हैं कि हमारे नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि बचपन और किशोर अवस्था में हिंसात्मक और गैर
सामाजिक व्यवहार के अलावा धड़कन की धीमी गति भी जवानी में हिंसात्मक और गैर सामाजिक व्यवहार का कारण बनती है।
डॉक्टर लेटवाला और उनके साथियों ने 1958 से 1991 के बीच पैदा हुए स्वीडन के 710264 पुरुषों के आंकड़ों का अध्ययन किया। इन पुरुषों पर 35 साल की उम्र
तक नजर रखी गई थी। इन लोगों की दिल की धड़कन और ब्लड प्रेशर 18 साल की उम्र में सेना की अनिवार्य जांच में चेक किए गए थे। अभी दो दिन पहले ही इस अध्ययन के नतीजे मेडिकल जर्नल जामा साइकेट्री में प्रकाशित किए हैं। इनमें
बताया गया है कि उन लोगों में से 40093 को बाद में हिंसा के कारण जेल भेजा गया।
अध्ययन को तैयार करने वालों ने एक मिनट में 82 या उससे जयादा बार की धड़कन वाले लोगों और एक मिनट में 60 व उससे कम की धड़कन वाले लोगों की
तुलना की। नतीजा वही था, किशोर उम्र में कम धड़कन वाले लोगों में आगे चलकर हिंसा के चलते जेल की हवा खाने की संभावना 39 फीसदी ज्यादा थी। यही
नहीं इनमें हिंसा के अलावा अन्य अपराधों में भी जेल जाने के चांस 25 फीसदी ज्यादा थे। अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिक चाहते हैं कि देश की न्याय व्यवस्था अपराध के इस पहलू को भी समझे।
साभार : डेली मेल